चालाकी से कोई महान् कार्य नहीँ होता।
—स्वामी विवेकानंद
Image source: Wikimedia Commons |
Note
- All the quotes are arranged in (Hindi) alphabetical order.
- This article will be continuously updated and new quotes will be added. Please check last update time and number of revisions at the bottom of this page.
- You may download this article clicking on Print/PDF at the bottom of this page.
- अपने आप पर श्रद्धा करना सीखो! इसी आत्मश्रद्धा के बल पर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ और शक्तिशाली बनो।
- अनन्त धैर्य, अनन्त पबित्रता तथा अनन्त अध्यबसाय - ये ही सत्कार्य में सफलता के रहस्य हैं।
- आओ, हम नाम-यश तथा दूसरों पर शासन करने की इच्छा को छोड़कर काम करें। काम, क्रोध तथा लोभ - इन तीनों बन्धनों से मुक्त हो जाएँ। तब सत्य हमारे साथ होगा।
- आनंदपूर्वक रहो। अपने आदर्श में स्थिर रहो।
- चालाकी से कोई महान् कार्य नहीँ होता।
- चाहिए - पूर्ण सरलता, पबित्रता, बिशाल बुद्धि और सर्बजयी इच्छाशक्ति। इन गुणों से सम्पन्न मुट्ठी भर लोग कम करें, तो सारी दुनिया उलट-पलट हो जायेगी।
- जगत् की सारी धनराशि की अपेक्षा 'मनुष्य' कहीं अधिक मूल्यवान है।
- जब-जब तुम्हे दुर्बलता का बोध हो; तब-तब समझो कि तुम न केबल स्वयं को, वल्कि अपने उद्देश्य को भी हानि पँहुचा रहे हो। अनन्त श्रद्धा तथा शक्ति ही सफलता का मूल है।
- जिसमें आत्मबिश्वास नहीं है, वही नास्तिक है। प्राचीन धर्मो के अनुसार, जो ईश्वर में बिश्वास नहीँ करता, वह नास्तिक है। नूतन धर्म कहता है, जो आत्मबिश्वास नहीं रखता, वही नास्तिक है।
- डटे रहो, मेरे बहादुर बच्चो। हमने अभी शुरुआत भर की है। निराश मत होना! कभी मत कहना - बहुत हुआ।
- तुम जो कुछ भी सोचोगे, वही हो जाओगे। यदि तुम अपने को दुर्बल समझोगे, तो दुर्बल हो जाओगे; बलबान सोचोगे, तो बलबान हो जाओगे।
- दुर्बलता का उपचार सदैव उसका चिन्तन करते रहना नहीं है, वरन् बल का चिन्तन करना है।
- देशात्मक बनो, जिस राष्ट्र ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किये हैं, उसे प्राणों से भी प्यारा समझो।
- धर्म वह वस्तु है, जिससे पशु मनुष्य तक और मनुष्य परमात्मा तक उठ सकता है।
- धर्म ही भारत की जीवनी-शक्ति है;और जब तक हिन्दू जाति अपने पूर्वजो से प्राप्त उत्तराधिकार को नहीं भूलेगी, तब तक संसार की कोई भी शक्ति उसका नाश नहीं कर सकती।
- निःसंदेह सभी महान् धीरे-धीरे ही होते हैं।
- पबित्रता, दृढ़ता रथ उद्दम - ये तीनों ही गुण में एक साथ चाहता हूं।
- पीठ पीछे किसी की निंदा करना पाप है। इससे पूरी तरह बचकर रहना चाहिए।
- पूर्ण निष्कपटता, पवित्रता, बिशाल बुद्धि और सर्वविजयी इच्छाशक्ति। इन गुणों से सम्पन्न मुट्ठी भर आदमियों को यह काम करने दो और सारे संसार में क्रन्तिकारी परिवर्तन आ जाएगा।
- बिना बिघ्न-बाधायों के क्या कभी कोई महान् कार्य हो सकता हे? समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है।
- भारत में दो बड़ी बुरी बाते हैं। स्त्रियों का तिरस्कार और गरीबो को जाती-भेद द्वारा पीसना।
- मेरा बिश्वास युवा पीढ़ी — नयी पीढ़ी में है; मेरे कार्यकर्ता उन्हीं में से आएंगे और वे सिंहो की भाँति सभि समस्याओं के हल निकालेंगे।
- मेरी सतत प्रार्थना है कि मेरे भीतर जो आग जल रही है, वही तुम्हारे भीतर जल उठे; तुम अत्यन्त निष्कपट बनो और संसार के रणक्षेत्र में तुम्हें बीरगति प्राप्त हो।
- मैं कायरता से घृणा करता हूँ। कायरों तथा राजनीतिक मूर्खताओं के साथ मैं कोई सम्बन्ध नहीं रखता। मुझे किसी भी प्रकार की राजनीति में बिश्वास नहीः है। ईश्वर तथा सत्य ही जगत् में एकमात्र राजनीति है, बाकी सब कूड़ा-करकट है।
- मृत्यूपर्यन्त काम करो - मैं तुम्हारे साथ हुँ और जब मैं नहीं रहूँगा, तब मेरी आत्मा तुम्हारे साथ कम करेगी।
- रुपये अदि सब कुछ अपने आप आते रहेंगे। रुपये नहीं, मनुष्य चाहिए। मनुष्य सब कुछ कर सकता है। रुपये क्या कर सकता है?
- सदा याद रखो कि प्रत्येक राष्ट्र को अपनी रक्षा स्वय़ं करनी होगी। इसी तरह प्रत्येक ब्यक्ति को भी अपनी रक्षा स्वय़ं करनी होगी। दूसरों से सहायता की आशा न रखो।
- यदि तुम शासन करना चाहते हो, तो दस बनो। यही सच्चा रहस्य हैँ।
- यह एक बड़ा सत्य है कि बल ही जीबन है और दुर्बलता ही मृत्यू है। बल ही अनन्त सुख है और अमर तथा शाश्वत जीवण है और दुर्बलता ही मृत्यू है।
- हमें ऐसी शिक्षा की आबश्यकता है, जिससे चरित्र-निर्माण हो, मानसिक शक्ति बड़े, बुद्धि बिकसित हो और देश के युवक अपने पैरों पर खड़े होना सीखें।
- शुरू में ही बड़ी-बड़ी योजनाएँ मत बनाओ, धीरे-धीरे कार्य आरम्भ करो - जिस जमीन पर तुम खड़े हो , उसे अच्छी तरह पकड़कर क्रमशः ऊंचाइयों को पाने की चेष्टा करो।
- शिक्षा! शिक्षा! केबल शिक्षा!
- सबसे बड़ी बात ये है कि ईश्वर में बिश्वास होने से भी पहले, स्वयं मैं बिश्वास रहे, परन्तु कठिनाई की बात यह है कि दिन प्रतिदिन हमारा स्वयं बिश्वास घटता जा रहा है।
- सर्बप्रथम स्त्रियों का बर्तमान दशा से उद्धार करना होगा। आम जनता को जगाना होगा। तभी तो भारतबर्ष का कल्याण होगा।
- साहसी बनो और कार्य करो। धैर्य और दृढ़तापुर्बक कार्य — यही एकमात्र मार्ग हे।
- सिंह-गर्जन के साथ आत्मा की घोषित करो। जीव को अभय देकर कहो — उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वारान् निबोधत।
- स्वयं कुछ न करना और दूसरा कोई कुछ करना चाहे, तो उसकी हंसी उड़ाना - यही हमारी जाती का एक महान् दोष है और इसी से हम लोगों का सर्बनाश हुआ है। हृदयहीनता और उद्दम का अभाब ही सब दुःखो का मूल है, अतः इन दोनों को त्याग दो।
This page was last updated on: 2 May 2014, 10:07 pm IST (UTC+5:30 hours)
Number of revisions in this page: 4
No comments:
Post a Comment
Comment policy